राजस्थान के ऐसे ही ऐतिहासिक एवं प्राचीन स्थलों में से एक नाम है ‘भाद्राजून’। भाद्राजून एक छोटा सा गांव है जो यहां के दुर्ग एवं महल के कारण अपनी अलग पहचान रखता है। पश्चिमी राजस्थान के जालौर जिले में यह प्राचीन स्थल लूणी नदी के बेसिन पर स्थित है। भाद्राजून पिछली शताब्दियों के अनेक युद्ध एवं ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है। मारवाड़ राजवंश तथा मुगल साम्राज्य के शासकों के बीच यहां अनेक बार युद्ध एवं आक्रमण हुए। यहां के शासकों की एक लम्बी सूची है जिन्होंने मारवाड़ के जोधपुर राज घराने के अधीन रह कर शासन चलाया और क्षेत्र व प्रजा की रक्षा के लिए काम किया। वर्तमान में भद्राजुन का दुर्ग राव जोधा जी के वंशज कर्णवीर सिंह के स्वामित्व में है।
महाभारत कालीन है ‘भाद्राजून’ भाद्राजून का सीधा संबंध महाभारत काल से है। अत: इसकी व्युत्पति पांच हजार वर्ष पुरानी मानी जाती है। ‘भद्राजुन’ शब्द दो शब्दों सुभद्रा एवं अर्जुन को मिलाकर बना है। सुभद्रा भगवान श्री कृष्ण की बहन थी तथा अर्जुन पांच पांडवों में तीसरे भाई थे। प्रारंभ में यह स्थल ‘सुभद्रा-अर्जुन’ के नाम से जाना जाता था लेकिन वर्षों बाद इसमें धीरे-धीरे परिवर्तन होता गया और बोलचाल की भाषा में एक ही शब्द ‘भाद्राजून’ का प्रयोग होने लगा। सुभद्रा अर्जुन (आज का भाद्राजून) ग्राम की बनावट लगभग पांच हजार वर्ष पहले की मानी जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में महाभारत का युद्ध हुआ था। अत: इसे महाभारत काल भी कहते हैं। उस समय का महान योद्धा एवं धनुर्धर अर्जुन भगवान श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा के प्रेम में आबद्ध हो गया था। उन दिनों पांच पांडव बनवास पर थे। इस दौरान उन्हें ग्यारह वर्ष तक जंगलों में और एक वर्ष अज्ञातवास में रहना था। यह घटना उसी समय की है जब वे एक वर्ष के अज्ञातवास पर थे। भाद्राजून व अन्य स्थलों का नामकरण माना जाता है कि श्री कृष्ण ने अर्जुन एवं सुभद्रा को गुजरात के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल ‘द्वारका’ जाने का परामर्श दिया। दोनों ने दो घोड़ों के रथ पर सवार होकर द्वारका के लिए प्रस्थान किया। लगातार तीन रात और दो दिन चलने के बाद वे लूणी नदी के बेसिन पर बनी इस घाटी में पहुंचे जहां आज भद्राजुन गांव स्थित है। उन दिनों यहां किसी तरह की बसावट नहीं थी। अत: यह स्थल सुभद्रा और अर्जुन के लिए विश्राम करने हेतु एकांत एवं सुरक्षित था। यहीं पर उन्होंने एक मंदिर के पुजारी की मदद से विवाह किया और कहते हैं कि इसके बाद धीरे-धीरे इस घाटी में अन्य लोगों ने भी बसना शुरू किया और इस स्थल का नाम ‘सुभद्रा अर्जुन’ हो गया जिसे आज ‘भद्राजुन’ के नाम से जाना जाता है।
जोधपुर के राठौड़ों के अधीन आने से पूर्व भद्राजुन परिहार राजपूतों, भाटी, सिंहल, राठौड़ एवं मंडलावर राठौड़ राजपूतों के अधीन भी रहा था। ऐतिहासिक दुर्ग एवं महल भाद्राजून दुर्ग का निर्माण सोलहवीं शताब्दी में एक पहाड़ी पर किया गया जो छोटा है लेकिन सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण, मजबूत एवं सुरक्षित है। यह दुर्ग घोड़े के खुर (पांव) के आकार की घाटी से जुड़ा हुआ है जिसमें पूर्व दिशा से प्रवेश किया जा सकता है। दुर्ग की दीवार लगभग 20-30 फुट ऊंची तथा इसकी एक समान चौड़ाई दस फुट की है। दुर्ग की प्राचीर में अनेक बुर्ज बने हुए हैं जिनका उपयोग युद्धकाल में तोप, बंदूक व तीर चलाने में किया जाता था। चारों ओर पहाड़ियां व घाटियां होने के कारण दुर्ग को महत्वपूर्ण प्राकृतिक सुरक्षा मिली हुई थी। सामरिक दृष्टि से सुरक्षित इस दुर्ग की अकबर के सेनापतियों द्वारा भी प्रशंसा की गई थी। अकबर की सेना जोधपुर के राव चंद्रसेन के समय यहां से गुजरी थी। दुर्ग पर कई प्राचीन अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। यहां ठाकुर बख्तावर सिंह ने एक पक्का जलाशय बनवाया जिसे ‘बखत सागर’ के नाम से जाना जाता है। यह दुर्ग उबड़-खाबड़ व पथरीली पहाड़ी पर बना हुआ है। इस पहाड़ी पर आज अनेक प्रकार के पेड़-पौधे वनस्पतियां व झाडिय़ां हैं जहां वन्य जीव विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं।
राज परिवार का वनवास स्थान जिसे रावला कहते हैं उसे आज हैरीटेज होटल में परिवर्तित किया गया है। यहां वर्ष भर देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं और कुछ दिन यहीं विश्राम करते हैं। उन्हें जीप सफारी द्वारा भद्राजुन के ग्रामीण परिवेश का अवलोकन व जंगल की सैर भी कराई जाती है। बरसात के मौसम में तो आसपास का नजारा बहुत ही खूबसूरत होता है। भाद्राजून महल में 14 सुसज्जित कक्ष हैं जिनमें प्रमुख हैं शीश महल, गोपाल महल, हवा महल और गुमटा महल आदि। अनेक कक्षों की दीवारों पर सुंदर चित्रकारी एवं कांच का काम किया गया है। आकर्षक जाली व झरोखा युक्त, महल का स्थापत्य देखते ही बनता है। इसमें ऐतिहासिक एवं प्राचीन साजो सामान भी संग्रहित है। महल की एक विशेषता है कि सूर्योदय की पहली किरण सभी कक्षों में सीधी पहुंचती है। भाद्राजून ग्राम के बाहरी भाग में राजा महाराजाओं की कलात्मक छतरियां बनी हुई हैं जिन्हें देवल कहते हैं।