लोक देवता बाबा रामदेवजी जैसलमेर

जैसलमेर। Baba Ramdev Ji राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता हैं। Runicha (जैसलमेर) में बाबा का विशाल मंदिर है जहां दूर-दूर से श्रद्धालु उन्हें नमन करने आते हैं। रामदेवजी सामुदायिक सद्भाव तथा अमन के प्रतीक हैं। बाबा का अवतरण वि.सं. 1409 को भाद्रपद शुक्ल दूज के दिन तोमर वंशीय राजपूत तथा रूणीचा के शासक अजमलजी के घर हुआ।

ग्यारहवी शताब्दी में दिल्ली के एक राजा थे श्री अनंगपाल जी !उनके दो पुत्रिया थी कमला बाई और रूप सुंदरी बाई ! कमला बाई का विवाह अजमेर के राजा सोमेश्वर चोहान के साथ हुआ तथा रूप सुंदरी बाई का विवाह कनोज के राजा विजयपाल जी राठोर के साथ हुआ ! महाराज अनंगपाल जी को कोई लड़का नहीं था ! उन्होंने कमला बाई के पुत्र पृथ्वीराज चोहान को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया !

धीर सिंह जी तंवर महाराज अनंगपाल जी के चचेरे भाई थे ! उन्होंने कुछ राज्य धीर सिंह जी तंवर को भी दिया ! धीर सिंह जी तंवर को एक पुत्र था जिनका नाम रनसिंह जी तंवर था ! रनसिंह जी तंवर को दो पुत्र थे एक का नाम धनरूप जी तंवर तथा दुसरे का नाम अजमल जी तंवर था !धनरूप जी तंवर को दो पुत्रिया थी लच्छा बाई एवं सुगना बाई !अजमल जी तंवर का विवाह जैसलमेर की राजकुमारी मैनादे के साथ हुआ ! अजमल जी तंवर पोकरण के राजा बने ! उनको कोई संतान नहीं थी !

राजा अजमल जी द्वारिकाधीश जी के परमभक्त थे ! वे हमेशा राज्य की सुख शांति की मनोकामना से द्वारिका जाते थे ! एक बार उनके राज्य में भयंकर अकाल पड़ा ! वे राज्य में अच्छी बारिश की मनोकामना लेकर द्वारिका गए ! कहते है भगवन द्वारिकाधीश की कृपा से उनके राज्य में बहुत अच्छी बारिश हुई! बारिश होने की अगली सुबह किसान अपने अपने खेतों को जा रहे थे , रस्ते में उनको राजा अजमल जी मिल गए ! किसान वापस अपने घरों की तरफ जाने लगे ! राजा ने वापस जाने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया की महाराज आप निसंतान है इसलिए आपके सामने आने से अपशकुन मानकर वे वापस लौट रहे है ! राजा को यह सुनकर बहुत दुःख हुआ लेकिन अजमल जी ने किसानो को कुछा नहीं कहा ! वे वापस घर आ गए और काफी निराश हुए !

उन्होंने संतान प्राप्ति की मनोकामना से द्वारिकाधीश के दर्शन हेतु जाने का निश्चय किया ! वे भगवन द्वारिकाधीश के प्रसाद हेतु लड्डू लेकर गए !मंदिर में पहुचकर राजा अजमल जी ने अत्यंत दुखी होकर भगवन द्वारिकाधीश की मूर्ति के सामने अपना सारा दुख कहा ! अपना दुखड़ा भगवन को सुनाने के बाद राजा अजमल जी ने बड़ी याचक दृष्टि से भगवन की मूर्त को देखा !

भगवन की मूर्ति हसती हुई सी देखकर अजमल को गुस्सा आया और उन्होंने लड्डू फेका , जो मूर्ति के सिर पर जा लगा ! यह सब देखकर मंदिर का पुजारी अजमल जी पागल समझकर बोला की भगवन यहाँ नहीं है भगवन तो समुद्र में सो रहे है !अगर आपको उनसे मिलाना है तो समुद्र में जाओ !

राजा अजमल जी बहुत दुखी होने के कारण पागलपन से समुद्र के किनारे गए और समुद्र में कूद गए ! भगवन द्वारिकाधीश ने राजा अजमल को समुद्र में दर्शन दिए और कहा की वे खुद भादवा की दूज की दिन राजा अजमल के घर पुत्र रूप में आयेंगे !राजा अजमल ने देखा की भगवन के सिर पर पट्टी बंधी थी ! राजा अजमल जी ने पूछा भगवन आपको और ये चोट !भगवन ने कहा मेरे एक भोले भक्त ने लड्डू की मारी ! यह सुनकर अजमल जी शर्मिंदा हुए! राजा अजमल जी भगवन से बोले भगवन मुझ अज्ञानी को कैसे पता होगा की आप ही मेरे घर आये है ! तो भगवन ने कहा जब मैं तेरे घर आउगा तो आँगन में कुमकुम के पैरों के निशान बन जायेंगे , मंदिर का शंख अपने आप बजने लगेगा ! राजा अजमल जी ख़ुशी ख़ुशी घर लौटे और रानी को सारी बात बताई ! कुछ दिन बाद राजा अजमल के घर एक लड़का हुआ जिनका नाम ब्रिह्मदेव रखा गया ! भगवन के कहे अनुसार ही भादवा की दूज के दिन भगवन द्वारिकाधीश ने राजा अजमल के घर रामदेव के रूप में अवतार लिया !

कहा जाता है कि जब Ramdev ji के चमत्कारों की चर्चा चारों ओर होने लगी तो मक्का (सऊदी अरब) से पांच पीर उनकी परीक्षा लेने आए। वे उनकी परख करना चाहते थे कि रामदेव के बारे में जो कहा जा रहा है, वह सच है या झूठ? बाबा ने उनका आदर-सत्कार किया। जब भोजन के समय उनके लिए जाजम बिछाई गई तो एक पीर ने कहा, हम अपना कटोरा मक्का में ही भूल आए हैं। उसके बिना हम आपका भोजन ग्रहण नहीं कर सकते। इसके बाद सभी पीरों ने कहा कि वे भी अपने ही कटोरों में भोजन करना पसंद करेंगे। रामदेवजी ने कहा, आतिथ्य हमारी परंपरा है। हम आपको निराश नहीं करेंगे। अपने कटोरों में भोजन ग्रहण करने की आपकी इच्छा पूरी होगी। यह कहकर बाबा ने वे सभी कटोरे रूणीचा में ही प्रकट कर दिए जो पांचों पीर मक्का में इस्तेमाल करते थे। यह देखकर पीरों ने भी बाबा की शक्ति को प्रणाम किया और उन्होंने बाबा को पीरों के पीर की उपाधि दी।

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