भील विद्रोह के जनक दौलत सिंह खींची

सामान्य क्षत्रियों का अंग्रेजों की दमनकारी नीति और राजपरिवारों के खिलाफ विद्रोह

दौला काका के नाम से मशहूर दौलत सिंह खींची चौहान अंग्रेजों के विरुद्ध लडने वाले मेवाड़ के आदिवासी बाहुल्य भोमठ क्षैत्र के जवास ठिकाने के बावलवाडा के प्रसिद्ध क्रांतिकारी योद्धा हो गए। 1818 ई. की संधि द्वारा मेवाड़ राज्य द्वारा अंग्रेज सरकार की अधिनता स्वीकार करने के बाद अंग्रेजी सरकार ने भौमठ के वनीय एवं पहाड़ी भू भाग को भी अपने अधीन करना चाहा तब यह भू- भाग पुर्णतः स्वतंत्र और आत्मनिर्भर था। जिसपर मेवाड़ या अन्य किसी राज्य का आधिपत्य नहीं था। इलाकों के आदिवासी लोग इस क्षैत्र के मार्गों एवं गांवो के रक्षक एवं नियामक थे।

अपने आधिपत्य और स्वार्थ पुर्ती हेतु अंग्रेज सरकार ने मेवाड़ महाराणा भीमसिंह जी को अपने साथ मिलाकर इलाके मे दखल करके अपने पुलिस थाने स्थापित करना शुरू कर दिया। ठिकानेदारों और आदिवासियों को दबाना शुरू कर दिया।

इस दमनकारी निती के विद्रोह मे दौलतसिंह के नेतृत्व मे भील समुदाय के साथ मिलकर अंग्रेजों के पुलिस थाने नष्ट कर दिए। एवं सभी ठिकानेदारों और भील समुदाय ने अंग्रेजों कि गुलामी स्वीकार करने से मना कर दिया।

दौलतसिंह जी का आदिवासी समुदाय पर गहरा विश्वास और प्रभाव था कि सर्वत्र उनके नाम से मर मिटने को सभी आतुर रहते थे।

वह सर्वत्र आदिवासी समुदाय और ठिकानों मे घुमते और सभी को अंग्रेजों के षडयंत्र के विरुद्ध संगठित करते।वर्षों तक अंग्रेजी सरकार दौलतसिह जी को पकड़ने एवं उनकी निती को कुचलने के लिए प्रयास करती रही ।

1927 ई. मेईडर कि ओर से भेजी गई टुकड़ी का सभी ने मिलकर पहाडी भाग मे सफाया कर दिया और उसके पश्चात अंग्रेजों को दौलतसिंह जी के साथ संधि करनी पडी जिससे उस क्षैत्र के सभी अधिकार जिसमें अंग्रेजों का अधिकार था स्वतंत्र कर दिए।बाद मे मैत्री और भलाई का विश्वास दिलाकर पल्टन का सलाहकार बना दिया एवं उनके साथियों को सिपाही बना दिया।

समझोते के अनुसार जबतक वह जीवित रहे उस क्षैत्र मे ठिकानेदारों और आदिवासी समुदाय को दबाने का प्रयास नहीं किया। बाद मे अंग्रेजों ने भील पलटन के सैनिकों को भील समुदाय कि स्वतंत्रता और स्वयत्तता को कुचलने का निरंतर दुरुपयोग किया। आदिवासी समुदाय मे दौलतसिंह जी कि लोकप्रियता के कारण उनके संबंध मे कई लोकगीत भी बने।

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