चूरू के संस्थापक ठाकुर मालदेव का इतिहास

ठाकुर मालदेव घांघू के ठाकुर बणीर जी के पुत्र थे | बणीर जी के वंशज बणीरोत राठौड़ कहलाते हैं | इतिहास व जनश्रुतियों के अनुसार ठा. वणीर जी की मृत्यु के बाद मालदेव की मां अपने अल्पवयस्क पुत्रों को लेकर काल्हेराबास’ (चूरू) चली आई और वहीं रहने लगी । उन दिनों वहाँ हाँडीभड़ग’ नाम का एक साधु धूनी तापा करता था । हाँडीभड़ग बलख बुखारा का बादशाह था और वैराग्य उत्पन्न होने के बाद उसने नाथ सम्प्रदाय में दीक्षा ली व साधू बन गया था | हाँडीभड़ग के बारे में विस्तृत चर्चा कभी बाद में करेंगे | भटियानी ठुकरानी के मन में साधु के प्रति बड़ी आस्था थी और वह हर शाम को मालदेव के हाथों साधु के लिए रोटी, खिचड़ी आदि भेजा करती थी।

एक दिन बड़े जोरों का तूफान आया, आंधी के साथ वर्षा भी हुई, उस दिन ठुकरानी साधु के लिए खाना भेजना भूल गई। कुछ रात गये जब तूफान का वेग कम हुआ तो ठुकरानी को याद आया और उसने उसी समय मालदेव के हाथ खिचड़े का ‘बाट का’ भर कर भेजा। इतनी मेह-अंधेरी रात में मालदेव को पाया देखकर महात्मा बहुत संतुष्ट हुआ ।

अगले दिन जब मालदेव बाबा के पास आया तब बाबा ने एक कमान और कुछ तीर बनाकर उसे दिये और एक वृक्ष की ओर संकेत करते हुए उसके तने में निशाना लगाने के लिए कहा । मालदेव ने निशाना लगाया और बाबा के आशीर्वाद से तीर उस वृक्ष के तने को भेदता हुआ वृक्ष के दूसरी तरफ की एक बालू का टीला में घुस गया। इस पर बाबा ने खुश होकर मालदेव को वरदान दिया कि इस धरती पर तेरा अधिकार होगा और तेरे तीर को धरती ही झेल सकेगी, कोई जीवित प्राणी नहीं झेल सकेगा | साथ ही बाबा ने मालदेव से कुछ नियम पालन करने को कहा | मालदेव ने बाबा की आज्ञाएं शिरोधार्य की और धनुर्विद्या में खूब निपुणता कर ली |

एक बार गाँव में कुछ लुटेरे आये और गायों को घेर कर ले चले । जाटों ने पीछा किया, लेकिन वे गायों को लौटा कर न ला सके | उसी समय मालदेव भी एक घोड़े पर सवार होकर पहुँचे और लुटेरों का रास्ता रोककर उन पर तीर बरसाने लगे । अन्त में लूटेरों ने हार मान ली तो मालदेव ने लुटेरों से कहा कि तुम लोग सारी गायों को लेकर गांव में चलो, इस प्रकार मालदेव सारी गायों को लौटा लाये। लुटेरों में से कुछ तो मालदेव के पास रह गए और शेष के हथियार लेकर मालदेव ने उनको छोड़ दिया।

मालदेव के इस कार्य की बड़ी प्रशंसा हुई, तभी क्षेत्र में नियुक्त चौधरी दिलावर खान को अहसास हो गया कि अब यह धरती हमसे जाएगी और मालदेव ही इसका मालिक होगा। मालदेव के पास अब तक आदमी और हथियार हो गये थे, अत: वे उस समय की परम्परा के अनुसार छोटी मोटी लूट करने लगे और कुछ ही समय में उन्होंने अपनी ताकत बढ़ाली । और एक दिन मालदेव ने क्षेत्र के चौधरी दिलावर खान को मार कर क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया | इस प्रकार चौधरी दिलावर खान के अधीनस्थ गाँवों पर मालदेव का कब्जा हो गया ।

कहा जाता है कि क्षेत्र पर कब्ज़ा होने के बाद मालदेव साधू के पास गए और राज्य स्थापित करने की सूचना दी | मालदेव ने नए नगर बसाने की आज्ञा ली व उसके नामकरण का अनुरोध किया, तब साधू ने कहा कि जब वह बादशाह था, तब चूरा नाम की उसकी एक दासी थी, उसी से मिली प्रेरणा व ज्ञान से मैं साधू बना अत: उसके नाम पर नगर का नाम चूरू रखा जाय | इस तरह कालेरों के बास से कुछ दूर मालदेव ने एक धूल कोट बनाकर अपना आवास बनाया और चूरू नगर की स्थापना की | बाद में मालदेव के वंशजों ने धूल कोट की जगह पक्का गढ़ और शहर पनाह बनाकर चूरू नगर का विकास किया |

कुछ इतिहासकारों ने चूरू की स्थापना को लेकर लिखा है कि चूहड़ जाट ने चूरू बसाया था | इतिहासकार ओझाजी ने लिखा है कि चूहड़ जाट ने सन 1620 ई. के आस-पास चूरू बसाया था, लेकिन चूरू इससे बहुत पहले बस चुका था | आर्य आख्यान कल्पद्रुम में सन 1541 ई. में मालदेव का चुरू पर कब्ज़ा करना लिखा है |

चूरू और उसके अधीनस्थ गाँवों पर अधिकार हो जाने के बाद मालदेव ने अपनी ताकत और बढ़ाली और वे बीकानेर के प्रमुख शक्तिशाली सरदारों में गिने जाने लगे ।

मालदेव का निधन संभवतः सात्यूं गांव में हुआ था जहाँ उनकी छत्री भी बनी थी जो अब गिर चुकी है, लेकिन वह स्थान आज भी मालदेव की छत्री के नाम से जाना जाता है |भाटों की बही के अनुसार मालदेव की दो ठाकुरानियाँ थी, एक रावलोत भटियानी लक्ष्मी दे जो देरावर के रायमल की बेटी थी और दूसरी कछवाही रुख कँवर जो लवा गांव के भारमल की बेटी थी | मालदेव के चार पुत्र थे रामचंद्र जिनका ठिकाना खारिया, सांवलदास ठिकाना चूरू नरहरिदास जिनके वंशज खंडवा और रतनसर में है | चौथे पुत्र दूदा निसंतान रहे ।

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