यदुकुलचंद्रभाल महाराजा भंवर पाल जी दूसरे दिल्ली दरवार के अतिथि बने साम्राज्ञी विक्टोरिया के 22 जनवरी ,1901 को देहांत के बाद बड़े पुत्र एडवर्ड सप्तम एवं महारानी एलेक्जैंड्रा को सम्राट एवं सम्राज्ञी घोषित करने हेतु सन 1903 में दूसरा दिल्ली दरबार लगा था।दिल्ली दरबार लॉर्ड कर्ज़न द्वारा आयोजित किया गया था, इस दरवार में करौली नरेश यदुकुलचंद्रभाल महाराजा भँवर पाल जी को आमंत्रित करने के लिए लॉर्ड कर्ज़न द्वारा पत्र भिजबाया गया l निमंत्रण पत्र में प्रेषक के नाम की जगह आपका मुखलिस दोस्त कर्ज़न लिखा हुआ था l राजा ने भी पत्र के उत्तर में कृतज्ञता दर्शाते हुए दरवार में सम्मिलित होने की सहमति प्रदान करदी l यह दरवार शान शौकत के प्रदर्शन का एक बड़ा अवसर था। इस आयोजन के लिए एक समतल मैदान को सुंदर भव्य अस्थायी नगर में परिवर्तित कर दिया गया। इसमें एक अस्थायी छोटी रेलगाड़ी प्रणाली लोगों की बड़ी भीड़ को दिल्ली के बाहर से यहां तक लाने-ले जाने हेतु चलायी गयी थी। एक पोस्ट ऑफिस, जिसकी अपनी मुहर थी; दूरभाष एवं बेतार सुविधाएं, विशेष रूप से निर्धारित वर्दी में एक पुलिस बल, तरह-तरह की दुकानें, अस्पताल, मैजिस्ट्रेट का दरबार, जटिल स्वच्छता प्रणाली, विद्युत प्रकाश , इत्यादि, बहुत कुछ यहां था। इस कैम्प मैदान के स्मरणीय नक्शे एवं मार्गदर्शिकाएँ बांटे गये। विशेष कार्यों के लिये पदक निर्धारण, प्रदर्शनियां, अतिशबाज़ी एवं भड़कीले नृत्य भी आयोजित किये गये।
25 दिसम्बर 1902 को महाराजा साहब अपने 500 लोगों के साथ स्पेशल रेलगाड़ी से दिल्ली पहुँच गए l वहाँ करौली नरेश के स्वागत के लिए राजनीतिक प्रतिनिधि उपस्थित था l राजा के सम्मान में 17 तोपों की सलामी दी गई तथा चार घोड़ों की बग्गी पर बैठा कर केंप ले जाया गया l इस केंप स्थल को वर्तमान में करोल बाग कहते हैं ,जिसकी पुरानी पहचान करौली बाग के नाम से थी l लोकोक्ति हैं कि लार्ड कर्जन ने मजाक मजाक में करौली डांग को कुछ कह दिया था जिसपर यह एक लोकोक्ति बनी करौली बाग को भी किस्सो भयो गोरे राजा बोले भमर पाल से के देख शान हमारी देख हमारो रुतबो , तेरे डांग में न देखो हैगो एसो रूतबो, बात सुन भमर पाल कु आयो एसो जोश जमीन खरीदी वाके नीचे रखी 4 मास वाके बाद बामन को दे दी , ओकात दिखा दी गोरे कु , डांगन को पानी बदलो लेगो , कहो कैसी रही बात इसी के आस –पास राजपूताने के अन्य राजाओं के केंप भी थे l वर्तमान कोरोनेशन पार्क के नाम से जाने जाने वाले स्थान पर आयोजित दरबार में प्रत्येक महाराजा की कुर्सी के पीछे 2-2 कुर्सी सरदारों के लिए थीं l करौली नरेश के पीछे लगी हुई एक कुर्सी पर राव हाड़ौती एवम दूसरी पर बाबू भोलानाथ चौधरी , होम मेम्बर बैठे थे l
कोटा महाराव के बाद महाराजा भँवर पाल जी की कुर्सी थी l दरबार की रस्म नव वर्ष के दिन शुरू हुई l प्रथम दिन कर्जन धूमधाम से हाथी पर सवार होकर महाराजाओं सहित, निकले। इनमें से कई हाथियों के दांतों पर सोना मढ़ा हुआ था। रीवा के महाराजा की दो हाथियों की गाड़ी आकर्षण का केंद्र थी l करौली के राजा बसंत हाथी पर सवार थे l राजा के दौनों ओर बैठे हुए शेर के बच्चों को देखकर ड्यूक ऑफ़ कनाट एवम वायसराय कर्ज़न सहित सभी दर्शक आश्चर्य चकित होकर देख रहे थे l कुछ लोगों को डर सता रहा था l lजैसे ही शाही शोभा यात्रा आगे बढ़ी ,अतिथियों के सम्मान में तोपें चलाई गईं l तोपों की कर्णभेदी ध्वनि से अनेक राजाओं के हाथी विचलित होकर भागने लगे,किन्तु करौली के महाराजा भंवर पाल जी का हाथी तोपों की आवाज से प्रभावित नहीं हुआ l
यह स्थिति भी करौली के राजा की प्रशंसा का कारण बनी l सभी को उस समय निराशा हुई, जब एडवर्ड सप्तम के स्थान पर उनके भाई, ड्यूक ऑफ़ कनाट दिल्ली पहुंचे । भारत के सभी प्रांतों से आये हुए राजकुमार एवं राजा जवाहरातों से सजे हुए थे। कई तो आपस में पहली बार मिल रहे थे। वहीं भारतीय सेना ने अपने सेनाध्यक्ष की अगुवाई में परेड निकाली, बैण्ड बजाये एवं जनसाधारण की भीड़ को संभाला । दूसरे दिन एक भव्य समारोह में राजाओं को सम्मानित किया गया l ड्यूक ऑफ़ कनाट द्वारा महाराजा भंवर पाल जी को भारत का सितारा शूर वीर सेनापति (केसीएसआई) की उपाधि दी गई l दो सप्ताह तक पोलो क्रीड़ा, अन्य खेल, महाभोज, बॉल नृत्य, सेना अवलोकन, बैण्ड, प्रदर्शनियों का तांता चलता रहा । एक महानृत्य सभा का आयोजन हुआ, जिसमें सभी उच्च श्रेणी के अतिथियों ने भाग लिया l लॉर्ड एवं लेडी कर्ज़न ने अपने शाही मयूर चोगे में नृत्य किया। अँग्रेजी साम्राज्य के दौरान इस आयोजन को विशेष महत्वपूर्ण माना गया था l